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Showing posts from April, 2020

"कोरोना- एक आध्यात्मिक परिदृश्य"

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"कोरोना- एक आध्यात्मिक परिदृश्य" कभी सोचा है आपने कि यह कोरोना वायरस कहाँ से आया है क्यों इतना घातक हो रहा है की सम्पूर्ण मानव जाति के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है? क्या यह परमपिता परमात्मा का कोई सन्देश है जिसे हम समझ नहीं पा रहे है? प्राचीन भारतीय वैदिक पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु के अनेक अवतार एवं अनेक रूप हैं जो उन्होंने समय समय पर विभिन्न देश काल परिस्तिथि अनुसार धारण किये है, जिन में से अधिकतर से हम आप परिचित है | उन्ही अनेक रूपों में से भगवान् विष्णु के दो विशेष रूप यम और काम की विवेचना हम आज यहाँ करने जा रहे है |  इन्ही दो रूपों ने सृष्टि के साम्य और पुनर्जन्म के चक्र को समन्वयित कर रखा है| जहा एक ओर काम जीवन का पर्याय है वही दूसरी ओर यम मृत्यु का पर्याय है | जहा एक ओर काम कहता है की मृत्यु स्थाई नहीं है वही दूसरी ओर यम कहता है की जीवन स्थाई नहीं है | ये दोनों अपना अपना कार्य बड़ी ही निष्ठा से निभा रहे है, इन्होने भौतिक यथार्थ को आध्यात्मिक यथार्थ से पृथक कर रखा है | स्थूल से सूक्ष्म और पुनः सूक्ष्म से स्थूल में परिवर्तन ही सृष्टि का नियम ह...

लॉक-डाउन : एक खोज

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लॉक-डाउन : एक खोज    कोरोना ने समाज को लॉक-डाउन नामक एक ऐसी नवीन व्यवस्था दी है जिसके कारण समाज को पुनः परिभाषित किया जा रहा है | लोगो के भीतर एक प्रश्न है की ये लॉक डाउन कब खुलेगा, कितना खुलेगा, क्या हमारा जीवन पूर्ववत हो पाएगा ? ऐसे न जाने कितने ही प्रश्न हैं जो हमारे आस पास उग आए है और निरंतर बढ़ रहे है | परन्तु इनमे से किसी भी प्रश्न का उत्तर किसी के पास नहीं है अगर इन प्रश्नो का  उत्तर किसी के पास है तो वो है केवल  समय जो की अपने अनुसार ही उत्तर देगा |  लॉक डाउन में लोग अलग अलग कारणों से परेशान है कोई इसलिए परेशान  है की उसके पास पैसे नहीं है तो कोई इसलिए परेशान है की पैसे तो है परन्तु उन्हें खर्च करने कहां  जाए | जितने लोग उतनी परेशानियां हैं | लोगो को ऐसा लगता है की लॉक-डाउन से पहले वे कभी परेशान नहीं थे  और लॉक-डाउन के बाद कभी परेशान होंगे भी नहीं | परन्तु उन्हें ये समझना आवश्यक है की परेशानियां आप के जीवन का अभिन्न अंग है जो आप के जीवन में निरंतर बनी रहती है बेशक उनका रूप परिवर्तित होता रहता है |  किसी भी बड़...

लॉक-डाउन कब ख़त्म होगा ?

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लॉक-डाउन कब ख़त्म होगा ? कोरोना ने समाज को कई नवीन, दुर्लभ, और जटिल परिभाषाए दी है जैसे  - लॉक-डाउन (L ockdown ), संगरोध (Q uarantine ) और सामाजिक दूरी (S ocial Distancing ) | जिसके अनुसरण के कारण लोगों की सम्पूर्ण जीवन शैली ही परिवर्तित हो गई है | इन तीनो का प्रत्येक व्यक्ति पर उसके स्वभाव एवं प्रवृति अनुसार अलग-अलग प्रभाव पड़ता है | लोग अपने अपने हिसाब से इन्हे परिभाषित कर रहे है और उन्ही परिभाषाओं अनुसार उनका पालन भी कर रहे है |  ऐसा कहा जाता है की देश, काल, परिस्तिथि अनुसार किसी एक वस्तु, शब्द अथवा स्थिति का प्रभाव सभी पर पृथक-पृथक पड़ता है | अधिकतर लोग इस लॉक डाउन, संगरोध, एवं सामाजिक दूरियों से परेशान हो चुके है उनकी  परेशानी के कारण अलग-अलग हो सकते है, परन्तु परेशान सभी है, कोई ज्यादा है तो कोई कम है | ऐसी अवस्था में सभी यही दुआ कर रहे है की ये लॉक-डाउन अब ज्यादा नहीं बढे और सब कुछ पहले की भांति सामान्य हो जाए | लोग अपनी सामान्य जिंदगी में लौटना चाहते है और ऐसा चाहने में कोई  बुराई भी नहीं है |  कौन  है...

कोरोना - संगरोध (QUARANTINE) एक मात्र विकल्प

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कोरोना - संगरोध (QUARANTINE) एक मात्र विकल्प  कोरोना एक यक्ष प्रश्न की भांति हमारे सामने आ के खड़ा हो गया है जिसका उत्तर हमारे पास नहीं है | कोरोना के इतने भयावह परिणाम के लिए हम कतई तैयार नहीं थे | हमारे पास न तो इसका इलाज है और नहीं इसे रोकने हेतु कोई अंकुश, कोरोना किसी मदमस्त हाथी की भांति सब कुछ रोंद्ता हुआ आगे बढ़ रहा है | इसे रोकने के लिए सम्पूर्ण विश्व केवल संगरोध (QUARANTINE) की निति अपनाने का समर्थन कर रहा है क्या वास्तविकता में संगरोध ही वह निति है जो कोरोना के प्रसार पर अंकुश लगाएगी ? मनुष्य के जीवन में तीन महत्वपूर्ण संस्थाए ऐसी है जो सतत रूप से उसके जीवन के समानांतर विद्यमान रहती है | शरीर, समाज एवं सृष्टि | इनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करना मनुष्य का अतिमुख्य कर्तव्य है | शरीर के लिए तप, समाज  के लिए दान एवं सृष्टि के लिए यज्ञ को परिभाषित और प्रतिपादित किया गया है | उक्त वर्णित तीनो संस्थाओ एवं उनकी आवश्यकताओं को समझने से पूर्व हमें दो प्रमुख भावों श्रद्धा और अहंकार को समझ लेना परम आवश्यक है |  श...

"कोरोना - प्रकृति का पलटवार"

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"कोरोना - प्रकृति का पलटवार" प्रकृति अपने साथ किये हुए समस्त सकारात्मक एवं नकारात्मक व्यव्हार के उत्तर में  सदैव  पलटवार करती है। कोरोना भी प्रकृति का एक पलटवार ही है, लेकिन क्या यह सच में ही संतुलन बनाने के लिए किया गया पलटवार है या प्रकृति की मंशा कुछ और ही है?  पुराने वेद पुराणों में ऐसे कई ज़िक्र मिलते हैं जो शायद आज की परिस्थिति में सच होते दिख रहे हैं, मग़र एक बात ऐसी है जिसका उल्लेख कहीं नहीं है मगर उसकी सम्भावना से इंकार भी नहीं किया जा सकता। और वो है मानव का इस धरती पर अनचाहा आगमन ! शायद मानव इस गृह की एक ऐसी उत्पत्ति है जो कभी वांछित ही नहीं थी ! बहुत पुराने किस्से कहानियों में आपने सुना होगा कि किसी एक शक्तिशाली राजा का राज पूरी धरती के सारे राज्यों पर चलता था। पर समय समय पर नए नए राज्यों का जन्म होना स्थिति को विकट कर दिया करता था क्योंकि वो नए राज्य उस राजा की प्रभुता को मानने से इंकार कर देते थे। अपने साम्राज्य के विस्तार में इस तरह की रुकावटों से निबटने के लिए एक तरक़ीब बनाई गयी जिसका नाम था अश्वमेघ यज्ञ ! इसमें वो...