लॉक-डाउन कब ख़त्म होगा ?
लॉक-डाउन कब ख़त्म होगा ?
कोरोना ने समाज को कई नवीन, दुर्लभ, और जटिल परिभाषाए दी है जैसे - लॉक-डाउन (Lockdown), संगरोध (Quarantine) और सामाजिक दूरी (Social Distancing) | जिसके अनुसरण के कारण लोगों की सम्पूर्ण जीवन शैली ही परिवर्तित हो गई है | इन तीनो का प्रत्येक व्यक्ति पर उसके स्वभाव एवं प्रवृति अनुसार अलग-अलग प्रभाव पड़ता है | लोग अपने अपने हिसाब से इन्हे परिभाषित कर रहे है और उन्ही परिभाषाओं अनुसार उनका पालन भी कर रहे है |
ऐसा कहा जाता है की देश, काल, परिस्तिथि अनुसार किसी एक वस्तु, शब्द अथवा स्थिति का प्रभाव सभी पर पृथक-पृथक पड़ता है | अधिकतर लोग इस लॉक डाउन, संगरोध, एवं सामाजिक दूरियों से परेशान हो चुके है उनकी परेशानी के कारण अलग-अलग हो सकते है, परन्तु परेशान सभी है, कोई ज्यादा है तो कोई कम है | ऐसी अवस्था में सभी यही दुआ कर रहे है की ये लॉक-डाउन अब ज्यादा नहीं बढे और सब कुछ पहले की भांति सामान्य हो जाए | लोग अपनी सामान्य जिंदगी में लौटना चाहते है और ऐसा चाहने में कोई बुराई भी नहीं है |
कौन है जो बंदिशों, अंकुशों और किसी की चोकसियों में रहना चाहेगा ?
कौन होगा जो चाहेगा कि उसके द्वारा किये गए किसी भी क्रिया कलाप का आंकलन कर के समाज उसे सही और गलत का प्रमाणपत्र दे ?
-"कोई नहीं " सच कहा आपने ऐसा कोई नहीं है जो ऐसा जीवन जीना चाहता हो |
किन्तु कल्पना कीजिये कि, कोई आप से कहे की आपको अपना पूरा जीवन ऐसी ही बंदिशों के साथ जीना है, जहां आपको स्वतंत्र होते हुए भी परतंत्र रहना है और यही नहीं, जहां पूरा समाज केवल इसीलिए बैठा हो कि आपके किसी भी कृत्य के लिए आपको सही अथवा गलत का प्रमाणपत्र दे सके | और मज़े की बात यह है कि आप ऐसा जीवन जीने से मना भी नहीं कर सकते है और यदि आपने हिम्मत दिखा कर मना कर भी दिया तो आपका परिवार, आपका समाज आपको ऐसा करने की सजा देने के लिए तैयार बैठा है |
आप ऐसे जीवन की कल्पना मात्र से ही सिहर उठे ना ?
तो आप को जानकर हैरानी होगी की हमारे देश की 48% जनसंख्या इसी प्रकार का जीवन जी रही है | वो जनसंख्या किसी और की नहीं हमारे देश की नारीयों की जनसँख्या है | जिनमे से कोई हमारी माँ है, बहन है, पत्नी है, बेटी है, मित्र आदि है | इन सभी का लॉक-डाउन, संगरोध, सामाजिक दूरिया जन्म से लेकर मृत्यु तक निरंतर चलता है | पर बड़े ही आश्चर्य की बात है कि हमने कभी इस और ध्यान ही नहीं दिया है | ये देश की वो आधी जनसंख्या है जिसे इन सभी बंदिशों और अंकुशों के साथ जीना आता है, इनका बचपन पिता के द्वारा लगाई बंदिशों, जवानी पति की लगाई बंदिशों और बुढ़ापा पुत्रों के द्वारा लगाई बंदिशों के साथ बीतता है |
वैसे तो हमारे देश मे नारी को शक्ति का प्रतीक माना जाता है उसके कई रूपों की उपासना भी की जाती है | परन्तु आदिवैदिक काल से आज तक नारी की सामाजिक एवं पारिवारिक स्थिति में लगातार गिरावट आती रही है | इस बात की पुष्टि हमारे इतिहास और साहित्य के द्वारा की जा सकती है|
कभी सोचा है हमने कि जिस 40 दिन के लॉक डाउन को घर की चार दीवारी में रहकर बिताना हमारे लिए लगभग असंभव जैसा है उसी प्रकार के लॉक डाउन को महिलाए पूरी जिंदगी जीती है, एक गृहणी को कभी अपने काम से छुट्टी नहीं मिलती, हमें तो सप्ताह में एक रविवार मिलता है उन्हें वो भी नहीं मिलता बल्कि उस दिन उन्हें अपने परिवार की फरमाइशों को पूरा करने के लिए ज्यादा काम करना पड़ता है | हम लोगो को त्योहारों पर ऑफिस से छुट्टी मिल जाती है पर उन त्योहारों पर भी एक गृहणी को घर में ज्यादा काम करना पड़ता है | आज कल लॉक डाउन कि स्थिति में एक गृहणी आम दिनों से ज्यादा काम कर रही है | जिसके लिए उसे कभी कोई श्रेय नहीं मिलता है | वो अपना सारा जीवन जिस घर की देहरी के भीतर बिता देती है अंत में उसे मालूम चलता है की वो तो कभी उसका था ही नहीं, बचपन में जिस घर में पली बढ़ी वो घर उसके पिता का था, विवाह उपरांत जिस घर में गई वो पूरी जिंदगी उसके पति का ही रहता है यहाँ तक की उसकी स्वयं की पहचान भी बचपन में पिता से जवानी में पति से और बुढ़ापे में बच्चों से होती है |
यहाँ मैं बताना चाहता हूँ कि हम बात किसी शक्तिहीन और अबला नारी समुदाय की नहीं कर रहे है हम बात कर रहे है उस नारी शक्ति की जिसकी जनसंख्या देश की कुल जनसंख्या की 48% है | जिसकी शक्ति और अधिकारों का साक्षी हमारे देश का संविधान है जिसके अनुच्छेद 14, 15(1), 16, 39 (D), 42 में उनका वर्णन है |
इतने समस्त अधिकार और शक्तिया होने के बाद भी नारी विनम्र और समर्पित भाव से न केवल अपने घर, परिवार एवं समाज की जिम्मेदारियां निभा रही है अपितु देशव्यापी कार्यों में भी पुरुषो के कंधे से कन्धा मिला कर कार्य कर रही है |
परन्तु क्या इसके परिणाम स्वरुप हमारा परिवार और हमारा समाज इन्हे प्रशंसा के दो शब्द दे रहा है ?
मनु स्मृति में लिखा है -
मनु स्मृति में लिखा है -
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।। मनुस्मृति ३/५६ ।।
परन्तु इस श्लोक का अर्थ नारी की भूत एवं वर्तमान परिस्तिथियों के अनुकूल नहीं है |
हम तो इतने क्रूर है कि नारी जाति के लिए लॉक-डाउन इतना कड़ा कर दिया है कि कन्या भ्रूण की हत्या करके उसे माँ के गर्भ से भी बाहर नहीं आने दे रहे है |
हम आज नहीं तो कल कोरोना से तो जीत ही जाएंगे और ये लॉक-डाउन भी आज नहीं तो कल ख़त्म हो ही जाएगा | परन्तु क्या हम देश की 48% प्रतिशत जनसँख्या पर लगा हुआ लॉक डाउन कभी ख़त्म कर पाएंगे ?
लेखक - डॉ. शैलेन्द्र सिंह
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