लॉक-डाउन : एक खोज
लॉक-डाउन : एक खोज
कोरोना ने समाज को लॉक-डाउन नामक एक ऐसी नवीन व्यवस्था दी है जिसके कारण समाज को पुनः परिभाषित किया जा रहा है | लोगो के भीतर एक प्रश्न है की ये लॉक डाउन कब खुलेगा, कितना खुलेगा, क्या हमारा जीवन पूर्ववत हो पाएगा ? ऐसे न जाने कितने ही प्रश्न हैं जो हमारे आस पास उग आए है और निरंतर बढ़ रहे है | परन्तु इनमे से किसी भी प्रश्न का उत्तर किसी के पास नहीं है अगर इन प्रश्नो का उत्तर किसी के पास है तो वो है केवल समय जो की अपने अनुसार ही उत्तर देगा |
लॉक डाउन में लोग अलग अलग कारणों से परेशान है कोई इसलिए परेशान है की उसके पास पैसे नहीं है तो कोई इसलिए परेशान है की पैसे तो है परन्तु उन्हें खर्च करने कहां जाए | जितने लोग उतनी परेशानियां हैं | लोगो को ऐसा लगता है की लॉक-डाउन से पहले वे कभी परेशान नहीं थे और लॉक-डाउन के बाद कभी परेशान होंगे भी नहीं | परन्तु उन्हें ये समझना आवश्यक है की परेशानियां आप के जीवन का अभिन्न अंग है जो आप के जीवन में निरंतर बनी रहती है बेशक उनका रूप परिवर्तित होता रहता है |
किसी भी बड़ी एवं नवीन व्यवस्था का प्रभाव लोगो पर तीन प्रकार से पड़ता है व्यक्तिगत, सामाजिक एवं आर्थिक | अगर आप सामाजिक और आर्थिक स्थिति में परिवर्तन करना चाहते है तो आप प्रत्यक्ष रूप से नहीं कर सकते ऐसी अवस्था में आप अपनी व्यक्तिगत स्थिति में परिवर्तन करके शेष दो को भी परिवर्तित कर सकते है | यानी परिवर्तन की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी हुए आप "स्वयं" | यकीनन अगर व्यक्ति की सोच सकारात्मक हो गई तो सामाजिक एवं आर्थिक स्थितियों के सकारात्मक होने में भी देर नहीं लगेगी |
व्यक्तिगत दृष्टि से देखे तो एक व्यक्ति का व्यक्तित्व मूल रूप से प्रवृति अनुसार अंतर्मुखी एवं बहिर्मुखी प्रकार का होता है |
विषय को आगे बढ़ाने से पूर्व कुछ विशेष बाते उक्त दोनों प्रवृतियों के बारे में जान लेना आवश्यक है |
अन्तर्मुखी व्यक्तित्व- ऐसे व्यक्तित्व का व्यक्ति चिन्तनशील होता है तथा अपनी ही ओर केन्द्रित रहता है। इस व्यक्तित्व के लक्षण, स्वभाव, आदतें, अभिवृत्तियाँ आदि बाह्य रूप में प्रकट नहीं होते हैं। इसीलिए, इसको अन्तर्मुखी कहा जाता है। इसका विकास बाह्य रूप में न होकर आन्तरिक रूप में होता है।
बहिर्मुखी व्यक्तित्व- ऐसे व्यक्तित्व वाले व्यक्ति की रूचि बाह्य जगत में होती है। वे अपने विचारों और भावनाओं को स्पष्ट रूप से व्यक्त करते है। वे संसार के भौतिक और सामाजिक लक्ष्यों में विशेष रूचि रखते है।
इन दोनों परिभाषाओं से हमे ये ज्ञात होता है की अंतर्मुखी व्यक्ति सांसारिक एवं भौतिवादी नहीं होता है क्यूंकि उसका सम्बन्ध बाहरी संसार से न होते हुए उसके स्वयं के अंतर्मन से है जबकि बहिर्मुखी व्यक्ति सांसारिक एवं भौतिकवादी है जिसका सम्बन्ध स्वयं के अंतर्मन से न होकर बाहरी संसार से होता है |अतः हम ये कह सकते है कि लॉक डाउन जैसी स्थिति में अंतर्मुखी व्यक्ति सबसे ज्यादा सुखी है |
परन्तु मेरे हिसाब से यह सत्य नहीं है, ये दोनों अंतर्मुखी और बहिर्मुखी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं | जो इस बात पर इतरा रहे है कि हम तो अंतर्मुखी है हमको इस लॉक डाउन से कोई प्रभाव नहीं पड़ता, मैं उन सभी से पूछना चाहता हूँ की उनके भीतर क्या है जिससे वे बात करते है या जिसमे वे लिप्त रहते है | उनके भीतर जो है वो आया कहा से ?
वास्तविकता ये है कि उन सभी अंतर्मुखी व्यक्तियों ने अपने भीतर एक समानांतर दुनिया विकसित कर ली है जो की बिलकुल बाहरी दुनिया का प्रतिबिम्ब है | और वे सदैव उसी में व्यस्त रहते है | जहा एक ओर बहिर्मुखी व्यक्ति बाहरी संसार और पदार्थ के साथ प्रत्यक्ष रूप से व्यस्त है वही दूसरी और अंतर्मुखी व्यक्ति आंतरिक रूप में उन्ही समस्त सांसारिक प्रतिबिम्बों के साथ अप्रत्यक्ष रूप से व्यस्त है |
सच्चाई ये है की हमारी पांच इन्द्रियां केवल इसी काम में व्यस्त रहती है की बाहरी संसार से जानकारियां ले कर आए और लाकर हमारे मन में रख दे, जैसे कुछ जानकारी आँख लाती है, कुछ जानकारी कान लाते है कुछ जानकारिया हम छूने से एकत्र करते है इत्यादि, और ऐसी ही समस्त जानकारियों से हमारे मन का कमरा भरा हुआ है | एक अनावश्यक भीड़ वहाँ लगी हुई है और हमने एक बिलकुल वैसा ही संसार अपने भीतर भी निर्मित कर लिया है जैसा बाहर है, और अंतर्मुखी व्यक्ति उसमे व्यस्त है ठीक वैसे ही जैसे बहिर्मुखी व्यक्ति बाहरी संसार में व्यस्त है | बहिर्मुखी व्यक्ति को बाहरी भीड़ पसंद है और अंतर्मुखी व्यक्ति को आंतरिक भीड़ पसंद है | भीड़ दोनों को ही पसंद है |
वास्तविक सिद्धांत ये है की हमारे भीतर किसी भी व्यक्ति, वस्तु, विचार एवं स्थान का जो प्रतिबिम्ब निर्मित है वह यदि हमें बाहरी संसार में बिलकुल वैसा ही मिल जाता है तो सब सामान्य है यदि वह वैसा नहीं है तो हम विचलित हो जाते है | हमने सदैव बाजारों को खुला देखा है, आवागमन के सभी संचार साधनो को चलायमान देखा है, हमने कभी नहीं देखा की हमने कही जाने का विचार किया हो और प्रशासन या सरकार जैसे तत्वों ने हम पर अंकुश लगाया हो, इन्ही समस्त कारणों से हम विचलित है |
यदि हम चाहते है की कोरोना के कारण जो लॉक-डाउन हमारे ऊपर लगा दिया गया है उसका बहुत ज्यादा प्रभाव हमारे व्यक्तित्व, हमारे मन, हमारे मस्तिष्क, हमारे समाज इत्यादि पर नहीं पड़े तो हम को बिलकुल बाहरी संसार जैसा एक लॉक-डाउन अपने मन के भीतर भी लगाना होगा | हमें वे सारी दुकाने, प्रतिष्ठान, मॉल जो हमारे भीतर खुली हुई है उन्हें बंद करना पड़ेगा | वे सारी यात्राएं जो हम अपने मन में कर रहे है वे सब तत्काल रोकनी पड़ेंगी | वे सारे समारोह आदि भी हमको अपने मन में भी स्थगित करने पड़ेंगे तब लॉक-डाउन का बाहरी चित्र हमारे आंतरिक चित्र के सामान दिखाई देगा और हमारी पीड़ा कम होने लगेगी |
परन्तु ऐसा कैसे संभव है क्यूंकि कोई सरकार ऐसी नहीं है जो ये आदेश निकाल दे की आज रात 12 बजे से आप के मन के संसार में भी लॉक-डाउन लगाया जाता है | ये तो हमको स्वयं ही करना होगा कोई इसमें हमारी मदद नहीं कर सकता है | हम नहीं चाहेंगे तो ये आंतरिक संसार हमारे भीतर कभी लॉक-डाउन नहीं होगा |
एक कथा के द्वारा समझने का प्रयास करते है-
बहुत प्राचीन काल में एक राजा हुआ करता था | उसे एकांत की तलाश थी जो की उसे कही नहीं मिलता था यहाँ तक की नींद में भी नहीं, नींद के दौरान भी सपनो में कोई न कोई आके उसके एकांत को ख़राब कर ही देता था | एक दिन उसने ये आदेश निकाल दिया की वह सोने जा रहा है और कोई भी उसके सपने में आके उसके एकांत को भंग करेगा उसे मृत्यदंड दिया जाएगा | सभी में हाहाकार मच गया की कोई स्वयं अपनी मर्जी से राजा के स्वप्न में नहीं जा सकता, अपने स्वप्नों का वास्तविक कारक तो राजा स्वयं है | परन्तु राजा को कौन समझाए | राजा सोने चला गया और जब जाग के आया तो अपने प्रधानमंत्री को मृत्युदंड दे दिया क्यूंकि वही राजा के स्वप्न में आया था |
तो हम राजा नहीं बने अपने मन के संसार में स्वयं ही लॉक डाउन लगाए |
हमे कोरोना नामक प्राकृतिक आपदा के कारण ही सही इस लॉक-डाउन का पालन करना पड़ रहा है | हमें इस लॉक-डाउन को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखना होगा | यह एक संयोग है की हमारे पास स्वयं को खोजने का अवसर है | हमे स्वयं की स्वयं तक यात्रा को प्रारम्भ कर देना चाहिए | सारे तनावों को छोड़ कर हम स्वयं को खोज लेंगे, यही हमारा उद्देश्य होना चाहिए | हमें यह प्रण लेना है कि बाहरी संसार में लॉक-डाउन रहे या नहीं रहे परन्तु हम अपना लॉक-डाउन तभी खोलेंगे जब हम स्वयं को खोज लेंगे |
हम कहीं अन्यत्र नहीं बल्कि स्वयं अपने मन के तहखाने में बंद है | हमारा पूरा मन पाँच इन्द्रियों के द्वारा लाए गए सामान की भीड़ से भरा पड़ा है, इसलिए तहखाने का रास्ता दिखाई नहीं पड़ रहा है | मन में लॉक डाउन लगा के भीड़ कम करनी पड़ेगी ताकि मन के तहखाने का रास्ता दिखे और हमारी स्वयं से भेंट हो सके |
लेखक - डॉ. शैलेन्द्र सिंह
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