कोरोना - एक मानसिक महामारी
कोरोना - एक मानसिक महामारी

कोरोना, एक ऐसा नाम जो आज हमारी जिंदगी का एक भयावह हिस्सा बन चुका है | आज हम सभी को ऐसा लगता है की कोरोना एक महामारी है जिसके द्वारा मुख्य रूप से मनुष्य की केवल शारीरिक क्षति हो रही है | परन्तु ऐसा नहीं है कोरोना ही नहीं किसी भी प्रकार की आपदा के कारण मुख्य रूप से किसी भी इंसान के जीवन में पड़ने वाले अच्छे या बुरे प्रभाव चार प्रकार के होते है | शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और सामाजिक |
हम ये तो प्रत्यक्ष रूप से देख ही रहे है की कोरोना एक बीमारी है अतः इसका इंसान पर शरीरिक प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है | परन्तु इसके कई अन्य दुष्प्रभावों के बारे में भी हमे जागरूक होना चाहिए |
कोरोना के कारण होने वाले लॉकडाउन से इंसान पर पड़ने वाले आर्थिक प्रभाव भी बहुत नकारात्मक रहे है |
इसी प्रकार सोशल डिस्टेंसिंग के कारण सामाजिक प्रभाव भी अत्यंत नकारात्मक रहे है |
अर्थात कोरोना के कारण इंसान को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ा है | हमें यह जानना चाहिए की ये तीनो क्षतियों की प्रतिपूर्ति तो समय के साथ हो जाएगी परन्तु कोरोना के कारण इंसान को जो मानसिक क्षति हो रही है उसकी प्रतिपूर्ति हो पाना आसान नहीं है |
अर्थात कोरोना के कारण इंसान को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ा है | हमें यह जानना चाहिए की ये तीनो क्षतियों की प्रतिपूर्ति तो समय के साथ हो जाएगी परन्तु कोरोना के कारण इंसान को जो मानसिक क्षति हो रही है उसकी प्रतिपूर्ति हो पाना आसान नहीं है |
जिस प्रकार विभिन्न शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक प्रभावों का प्रत्यक्ष प्रभाव हमारी मानसिक स्थिति पर पड़ता है ठीक उसी प्रकार हमारी मानसिक स्थिति का प्रभाव भी हमारी शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक स्थितियों पर पड़ता है |
एक शोध से ज्ञात होता है की भारत में विभिन्न प्रकार के मानसिक रोगों से ग्रसित व्यक्तियों की संख्या बहुत बड़ी है | शोध के अनुसार भारत में प्रत्येक पांच में से एक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार के मानसिक रोग से ग्रसित है |
वैसे देखा जाए तो भारत में ही नहीं पूरे विश्व में मानसिक विकारो के रोगियों की संख्या दिन -प्रतिदिन बढ़ रही है |
डिप्रेशन, एंजाइटी, पागलपन, बायपोलर विकार, अनिद्रा, मनोग्रसित बाध्यता विकार (OCD) इत्यादि जैसे कई विकार है जो आजकल हमारी दैनिक दिनचर्या में समाहित हो चुके है | इनमे से डिप्रेशन, एंजाइटी, और मनोग्रसित बाध्यता विकार (OCD) ऐसे विकार है जिनसे कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में, थोड़े या बहुत, हम सभी पीड़ित रहते है |
आजकल जब हमारे चारों तरफ कोरोना जैसी घातक महामारी ने अपने पाँव पसार रखे है तब ऐसी स्थिति में हम शारीरिक रूप से कम पीड़ित है बल्कि मानसिक रूप से ज्यादा पीड़ित है | हम लोग कब डिप्रेशन, एंजाइटी, और मनोग्रसित बाध्यता विकार (OCD) जैसे बिमारियों से ग्रसित हो गए हमे पता ही नहीं चला |
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हम लोग घरों से बाहर निकलने में डरने लगे है, लोगो से मिलने में हमे डर लगने लगा है, लोगो ने घरों में अखबार लेना बंद कर दिया है, कोई सामान यदि बाजार से लाते है तो एक शक दिमाग में पैदा होता है की कही इस सामान के साथ हम कोरोना को तो घर में नहीं ला रहे है, कोई खांसे या छींके तो हमे यही लगता है की ये व्यक्ति कोरोना संक्रमित है, हम में से कई बिना मतलब अपना बुखार नापते रहते है, हमे लगातार ये लगता रहता है की हम भी कोरोना से पीड़ित हो गए है, लोग लगातार घर में है परन्तु फिर भी थोड़ी थोड़ी देर में अपने हाथ धो रहे है, घर ही में रहते हुए भी, सोते समय भी मास्क लगाए हुए है | और भी न जाने कितने प्रकार के डर हमारे भीतर अपना घर बना चुके है | हम सभी पर कोरोना से ज्यादा प्रभाव तो कोरोना के डर का पड़ता दिखाई दे रहा है | जिसके कारण हम सभी मानसिक रूप से पूर्णतः बीमार हो चुके है |
वर्तमान समय में कोरोना ने हमारे भीतर एक अनजान सा डर पैदा कर दिया है जो की कोरोना से भी ज्यादा घातक है क्यूंकि कोरोना तो केवल हमारे शरीर को नुक्सान पंहुचा रहा है परन्तु इसके डर ने तो हमारी इच्छाशक्ति ही समाप्त कर दी है और हमें मानसिक रोगी बना दिया है |
अब एक प्रश्न हमारे भीतर उठता है की आखिर ये डर है क्या ? और क्यों पैदा होता है ?
तो डर एक मानसिक अवस्था है जो मनुष्य में तब पैदा होती है जब उसे लगता है की जो कुछ उसका है वह उससे छीनने वाला है या समाप्त होने वाला है | मनुष्य को उसके स्वास्थ्य, जीवन, धन, सुख, वैभव, प्रतिष्ठा, अपने स्वजनों इत्यादि के छींनने या दूर हो जाने का डर निरंतर लगा रहता है | एक व्यक्ति जो यह समझता है की उसके पास खोने को बहुत कुछ है उसका डर उतना ही बड़ा होता है | मुख्य रूप से डिप्रेशन, एंजाइटी, और मनोग्रसित बाध्यता (OCD) इत्यादि विकारों के उत्पन्न होने में इसी प्रकार के विभिन्न डरों का मुख्य योगदान है |
देश, काल एवं परिस्थिति अनुसार प्रत्येक मनुष्य पर डर का प्रकार और प्रभाव अलग अलग पड़ता है | एक मनुष्य का सम्पूर्ण जीवनकाल मुख्यतः चार चरणों में विभाजित किया जा सकता है |
बचपन
किशोरावस्था
युवावस्था
वृद्धावस्था
मनुष्य के इन चारों चरणों में कोरोना और लॉकडाउन इत्यादि का प्रभाव अलग अलग पड़ता है | जिनकी एक संक्षिप्त व्याख्या करने का प्रयास हम यहाँ कर रहे है |
बचपन : यह मनुष्य के जीवन का प्रथम चरण जो की उसके जन्म से १२ वर्ष की आयु तक का होता है | बचपन वह समय है जब सब कुछ स्वछन्द होता है बचपन किसी भी प्रकार के मानसिक विकारों से मुक्त होता है | बचपन में ऊब तो हो सकती ही परन्तु सब कुछ समाप्त होने का डर नहीं होता है | बचपन अपनी मानसिकता अपने माता - पिता, बड़े भाई बहिनो आदि घर के सदस्यों की मानसिकता के अनुसार निर्मित करता है | यदि किसी बच्चे के माता - पिता प्रसन्न है तो वह भी प्रसन्न होगा यदि माता - पिता दुखी है तो वह भी दुखी होगा परन्तु कोई भी मानसिक विकार उसका स्वयं का निर्मित किया हुआ नहीं हो सकता है | अतः बचपन पर कोरोना से ज्यादा प्रभाव लॉकडाउन का पड़ रहा है क्यूंकि बच्चे अपनी गर्मियों की छुट्टियों का लाभ नहीं ले पा रहे है, उनका पूरा समय घर पर ही व्यतीत कर रहे है, इसलिए बच्चे अब ऊबने लगे है परन्तु डरे नहीं है |
किशोरावस्था : 13 वर्ष से 19 वर्ष की आयु किशोरावस्था कहलाती है | यह अवस्था एक सेतु की भांति होती है जिसने बचपन और युवावस्था को आपस में जोड़ रखा है | किशोरावस्था में ही मित्रता एवं प्रेम जैसी महत्वपूर्ण भावनाओ की उत्पत्ति होती है और इनकी महत्तता का ज्ञान होता है | किशोरावस्था में मनुष्य के अंदर लॉकडाउन जैसी बंदिशों के कारण अवसाद (डिप्रेशन) के उदय होने की संभावनाए है, क्यूंकि लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के चलते किशोरों को अपनी मित्रता और प्रेम की भावनाओ को दबाना पड़ रहा है | किशोरों को बचपन के उपरांत नवीन पंख मिलते है अतः उन्हें स्वछन्द होकर भावनाओं के आकाश में उड़ान भरना अच्छा लगता है जोकि लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के कारण नहीं हो पा रहा है | किशोरावस्था में कोरोना की तुलना में, लॉकडाउन के कारण अधिक मनोविकार उत्पन्न हो रहे है परन्तु उनके प्रभाव अधिक घातक नहीं है |
युवावस्था : मनुष्य के जीवन में 20 वर्ष से 50 वर्ष की आयु तक का सबसे महत्वपूर्ण कालखंड युवावस्था कहलाता है | यही वह कालखंड है जब मनुष्य के पास पाने को भी बहुत कुछ होता है और खोने को भी | इसी अवस्था में मनुष्य की जिम्मेदारियां और महत्वाकांक्षाएं चरम पर होती है एक तरफ अपने परिवार की जिम्मेदारियां और दूसरी तरफ समाज में खुद को स्थापित करने की महत्वाकांक्षाओं के बीच मनुष्य दौलन करता रहता है | यही वह अवस्था है जब मनुष्य के अंदर सब कुछ खो देने का डर सबसे अधिक होता है | इसीलिए इस अवस्था में कोरोना और लॉकडाउन दोनों के कारण ही मनुष्य में डिप्रेशन, एंजाइटी, और मनोग्रसित बाध्यता (OCD) इत्यादि मानसिक विकार उत्पन्न होने की आशंका होती है | यही वह अवस्था है जिस पर कोरोना और लॉकडाउन की मार चौतरफा पड़ी है |
वृद्धावस्था : 50 वर्ष से मनुष्य की मृत्यु तक का काल खंड वृद्धावस्था कहलाता है | इस अवस्था तक आते आते लगभग 80% लोगो की समस्त जिम्मेदारियां समाप्त हो जाती है | वे सामाजिक रूप में स्थापित हो चुके होते है | परन्तु बढ़ती उम्र और विभिन्न प्रकार के आयु जनित रोगों के कारण सामान्यतः इस अवस्था में डिप्रेशन और एंजाइटी इत्यादि मनोविकार उत्पन्न हो जाते है | परन्तु कोरोना और लॉकडाउन के कारण इन मनोविकारों में बढ़ोतरी हुई है | बुजुर्ग वैसे भी खुद के स्वास्थ्य के कारण परेशान रहते है उस पर से ये कोरोना के खतरे ने उनमे डिप्रेशन, एंजाइटी, और मनोग्रसित बाध्यता विकार (OCD) इत्यादि की मात्रा और अधिक बढ़ा दी है | वृद्धावस्था में लॉकडाउन से कही ज्यादा नकारात्मक प्रभाव कोरोना महामारी का पड़ रहा है | क्यूंकि बुजुर्गों को लगता है की इस अवस्था में कोरोना का प्रत्यक्ष प्रभाव अर्थात मृत्यु |
अब यहाँ समझने वाली बात यह है की कोरोना हो, लॉकडाउन हो, या कोई भी अन्य प्रकार की विपदा अथवा आपदा हो, मनुष्य की स्वाभाविक मनोवृति है की उसके भीतर डिप्रेशन, एंजाइटी, और मनोग्रसित बाध्यता (OCD) इत्यादि मनोविकार उत्पन्न हो ही जाते है | देश, काल, परिस्थति एवं समयानुसार इनके प्रभाव कम अथवा ज्यादा हो सकते है |

आज कोरोना और लॉकडाउन जैसी अस्थाई आपदाओं के कारण जो मनोविकार मनुष्य में उत्पन्न हुए है | उनका प्रभाव कोरोना महामारी से भी ज्यादा घातक है | इन मनोविकारों से बचने के लिए हमे अपने भीतर और बाहर सकारात्मक माहौल का निर्माण करना होगा | ऐसे बहुत सारे काम है जिन्हे हम अपनी दैनिक दिनचर्या में शामिल कर सकते है जिनसे ये डर और अवसाद का माहौल हमारे आसपास से समाप्त हो जाए |
- हमे न्यूज़ चैनल कम से कम देखने है क्यूंकि वहां अपनी TRP बढ़ाने के लिए कोरोना और लॉकडाउन की समस्या का केवल नकारात्मक पक्ष ही दिखाते है |
- हमें न्यूज़ देखनी भी है तो बिलकुल देखें परन्तु उसमे सकारात्मकपक्ष को देखें की भारत में मृत्युदर बाकि विश्व से कम है | साथ ही हम ये भी देखें की जितने लोग रोज संक्रमण वाले कॉलम में बढ़ते है उतने ही लोग कोरोना से पूर्णतः स्वस्थ होने वाले कॉलम में भी बढ़ रहे है |
- हमे देखना है की कोरोना से मुक्त जिलों की संख्या, कोरोना से पीड़ित जिलों की संख्या से कई गुना अधिक है |
- सोशल मीडिया पर कोरोना सम्बन्धी गलत और झूटी अफवाहों से दूर रहने का प्रयास करे |
- हम हमेशा सकारात्मक पहलु ही देखें और अपनी अवस्था की सकारात्मक तुलना ही करे |
- अगर हम अपने घर में अपने अपिवार के साथ लॉकडाउन के कारण बंद है तो उन लोगो को देखे जो की परदेश में अपने परिजनों से दूर अकेले इस लॉकडाउन में बंद है |
- अगर हम परदेश में है और अकेले लॉकडाउन में बंद है तो उन्हें देखे जो बिना सोचे समझे पैदल व विभिन्न साधनो से अपने घर की तरफ निकल पड़े है और रास्तों में फंस गए है |
- अगर हम उन लोगो में से है जो रस्ते में फंस गए है तो खुद की तुलना उन कोरोना वॉर्रिएर्स से करे जो की अपने आप को खतरे में डाल कर हम लोगो की सेवा कर रहे है और कई हफ़्तों से खुद के परिवार से दूर है |
- यदि हम कोरोना वॉरियर्स है तो खुद की तुलना उन कोरोना पीड़ितों से करे जो हस्पतालों में अपना उपचार करा रहे है |
- और यदि हम दुर्भाग्य से कोरोना संक्रमित है और हमारा इलाज चल रहा है तो उन कोरोना पीड़ितों से स्वयं की तुलना करे जो की बिना इलाज के ही कोरोना से अपनी लड़ाई हार गए है |
अंततोगत्वा हम कुछ भी करे केवल स्वयं को सकारात्मक रखे क्यूंकि नकरात्मक विचार हमे मानसिक रूप से कमजोर करते है और हम विभिन्न मनोविकारों से पीड़ित हो जाते है |
आज हमे खुद को सकारात्मक और मजबूत रख कर न केवल कोरोना से लड़ना है बल्कि उसे हराना भी है इसलिए सभी सावधानियो का पालन करते हुए स्वयं को सकारात्मक रखकर अपनी दैनिक दिनचर्या में लौटने का प्रयास करना है |
लेखक : डॉ. शैलेन्द्र सिंह
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