कोरोना - स्वदेशीकरण की एक नवीन परिभाषा
कोरोना - स्वदेशीकरण की एक नवीन परिभाषा
कोरोना ने हमें जिंदगी को देखने का एक नया नजरिया दिया है | इंसान कोरोना से पहले जिन परिभाषाओं के साथ जी रहा था वे सारी परिभाषाएं कोरोना के कारण बदल रही है | इंसान की बहुत सारी गलतफहमियां एक एक करके टूटती जा रही है | इंसान कोरोना के कारण अपने जीवन जीने के तरीकों को बदलने पर विचार कर रहा है | इंसान की एक बहुत अच्छी फितरत है की वह परिवर्तन का स्वागत बड़ी ही समझदारी के साथ करता है | यही कारण है की इंसान इस महामारी के डर से बाहर आएगा फिर चाहे इसे मार कर आए या इससे समझौता करके |
आज पूरा विश्व कोरोना से दो मोर्चों पर लड़ रहा है | पहला की इस कोरोना को समाप्त करके पुनः पहले जैसा जीवन कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? और दूसरा ये की लोगो का जीवन और अर्थव्यवस्था की क्षति किस प्रकार रोकी जा सकती है ?
यह सत्य है की प्रत्येक चुनौती में एक अवसर छुपा होता है | बस उस अवसर को पहचानने की क़ाबलियत ही इंसान के भविष्य का निर्धारण करती है | आज हमारे देश के सामने कोरोना एक कठिन चुनौती बन कर खड़ा हुआ है | हमें न केवल इस चुनौती से निपटना हे बल्कि इस चुनौती से उत्पन्न हुए अवसरों को भुनाने की दिशा में काम भी करना है |
हम सभी जानते है की भारत और चीन के मध्य व्यापारिक दृष्टिकोण से एक प्रत्यक्ष प्रतिस्पर्धा है | जो की पिछले कई दशकों से निरंतर बरकरार है | आज के परिपेक्ष में कोरोना के कारण उत्पन्न हुइ चुनौतियों को अवसरों में बदलने के लिए हमे सर्वप्रथम अपने सबसे बड़े व्यापारिक प्रतिद्वंदी चीन, जो की विश्व में नंबर दो की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, के बारे में जानना होगा |
चीन जितना शक्तिशाली हमे आज दिखाई देता है ऐसा वह हमेशा से नहीं था | हम बात करते है 1970 के दशक की, तब चीन विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हुआ करता था | 1978 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ चीन के एक अत्यंत प्रभावशाली नेता देंग जिओपिंग के नेतृत्व में चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के प्रयास प्रारम्भ किये |
जिसके अंतर्गत चीन ने मुख्य रूप से दो प्रारंभिक चरणों में कार्य प्रारम्भ किया
पहला कि, कृषि का असामूहीकरण करने पर जोर दिया गया, नवीन उद्यमों को प्रारम्भ करने पर जो दिया गया साथ ही विदेशी निवेश को चीन में आमंत्रित किया गया | हालांकि कुछ उद्यम सरकार ने अपने स्वामित्व में ही रखे |
दूसरा कि, सरकार ने स्वयं के नियंत्रण के कई उद्यमों का निजीकरण अनुबंध के आधार पर करना प्रारम्भ किया जिस कारण सरकार का एकाधिकरण समाप्त हुआ और मूल्य नियंत्रण और संरक्षणवादी नीतियों और नियमो का पालन आसान हुआ | हालांकि सरकार ने अपना पूरा नियंत्रण समाप्त नहीं किया और बैंकिंग, रक्षा और पेट्रोलियम जैसे कई मुख्य क्षेत्र अपने नियंत्रण में ही रखे |
चीन को समय रहते ये समझ में आया की यदि हमने बहुत शीघ्र अपनी रूढ़ि वादी सोच को नहीं बदला तो हम विश्व में आर्थिक रूप से पिछड़ते ही जाएंगे | इसलिए चीन ने समय रहते बहुत सारे क्रांतिकारी कदम उठाए जिसमे सबसे अधिक प्रभावशाली निर्णय FDI (Foreign Direct Investment) था जिसके अंतर्गत चीन ने विदेशी निवेश को अपने देश में आमंत्रित किया |
चीन, विश्व में सबसे अधिक जनसँख्या वाला देश है | किसी समय चीन जिस असीमित जनसँख्या के कारण परेशान था, उसी जनसँख्या को चीन ने अपनी शक्ति बनाया, अपनी रूढ़िवादी सोच, और नीतियों को शिथिल किया और एकाग्र होकर कार्य प्रारम्भ किया और आज विश्व की नंबर दो की अर्थव्यवस्था है |
कहते है की सदा दिन एक से नहीं रहते, आज कोरोना के कारण चीन की छवि विश्व के सामने ख़राब हुई है | किस प्रकार चीन के वुहांग प्रान्त से उत्पन्न हुआ ये कोरोना वायरस चीन के सभी बड़े शहरों को अपना निशाना बनाए बिना विश्व के अन्य देशों में विनाशकारी रूप से फ़ैल गया | यह एक रहस्य है जिसका उत्तर केवल और केवल चीन जानता है | आज विश्व का कोई भी देश चीन के साथ व्यापार करना नहीं चाहता है | आज सारा विश्व व्यापारिक दृष्टि से चीन के विकल्प के रूप में भारत को देख रहा है | भारत के द्वारा इस मोके को अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहिए | आज भारत को वही सारे कदम उठाने चाहिए जो चीन ने 1970 के दशक में उठाए थे |
किसी भी देश की तरक्की तब तक नहीं हो सकती जब तक की वह अपना व्यापार को अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक न पंहुचा दे | प्रत्येक देश चाहता है की उसके यहाँ विदेशी निवेशक आए और निवेश करे ताकि देश और अधिक समृद्ध हो सके | इसे ध्यान में रखते हुए भारत को विदेशी निवेश (FDI) की दिशा में दृढ़ता पूर्वक सोचना चाहिए |

भारत के दृष्टिकोण से विदेशी निवेश (FDI) को प्रभावित करने वाले कारकों की समीक्षा करे तो ज्ञात होता है की FDI को सबसे महत्वपूर्ण दो कारक प्रभावित करते है :
1. आर्थिक संरचना
- आर्थिक संरचना के अंतर्गत भारत को अपने व्यापारिक बाजार का आकार बढ़ाना होगा ताकि FDI आकर्षित हो और सकल घरेलु आय में वृद्धि हो सके |
- भारत जनसँख्या की दृष्टि से विश्व में दूसरे नंबर पर आता है, भारत एक युवा देश है जहाँ सस्ते श्रम की प्रचुरता है FDI को आकर्षित करने का सबसे बड़ा कारक सस्ता श्रम ही है |
- किसी भी देश में व्यापार तरक्की के लिए भूमिकारूप व्यवस्था (Infrastructure Development) का सुदृढ़ होना अति आवश्यक है | भारत एक ऐसा देश है जहाँ भूमि जल और आकाश तीनो मार्गों से व्यापार बड़ी सुगमता से किया जा सकता है | इसके लिए नवीन भूमिकारूप व्यवस्थाओं का निर्माण अति आवश्यक है |
2. उदारीकरण और विशेषाधिकार नीतियां
- सर्वप्रथम ऐसी नीतियों का निर्माण करना होगा जिसके अंतर्गत देश में घरेलु उद्यम स्थापित करना सरल हो जाए |
- सरकार विभिन्न स्तर पर नवीन उद्यमियों को न केवल प्रोत्साहन दे अपितु उन्हें उद्यम स्थापित करने के लिए आर्थिक सहायता भी दे | जब तक देश का घरेलु उद्यम सुदृढ़ नहीं होगा तब तक किसी भी विदेशी निवेश को आकर्षित नहीं किया जा सकता है |
- विदेशी निवेश में सुधार के लिए FDI क़ानून और नीतियों को सरल करना होगा जिस कारण विदेशी निवेशक भारत में आकर्षित हो |
- भारत के कर ढांचे की जटिलताओं को कम करना होगा एवं व्यापरियों को विशेषाधिकार देने होंगे |
- भारत में जितने भी प्रवासी मजदूर काम करते है उनका एक समेकित डेटाबेस तैयार होना चाहिए तथा उनको केंद्रीय सरकार से सत्यापित एक पहचान पत्र जारी होने चाहिए जिसके द्वारा उन्हें किसी भी प्रकार की केंद्र सरकार से प्राप्त राहत या योजना का लाभ प्रत्यक्ष रूप से मिल सके | जिस कारण इस बार कोरोना और लॉकडाउन काल में जो कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम प्रवासी मजदूरों के साथ घटा वैसा भविष्य में न हो |
इसके लिए भारत ने कई प्रकार के प्रयास पिछले कई वर्षो से प्रारम्भ कर दिए है | जिसका सबसे महत्वपूर्ण और मजबूत स्तम्भ है " मेक इन इंडिया " जिसे 2014 में प्रमोचित किया गया था | इसका मुख्य उद्देश्य है की प्राथमिक तौर पर दुनिया भर के निवेशों को आकर्षित करना और भारत के विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत करना है।
" मेक इन इंडिया " कार्यक्रम भारत की आर्थिक वृद्धि के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका उद्देश्य मौजूदा भारतीय प्रतिभा-आधार का उपयोग करना तथा अतिरिक्त रोजगार के अवसर पैदा करना है । इस कार्यक्रम का उद्देश्य अनावश्यक कानूनों और विनियमों को समाप्त करके, आसानी से नौकरशाही की प्रक्रियाओं को आसान बनाकर, सरकार को और अधिक पारदर्शी, उत्तरदायी और जवाबदेह बनाकर भारत के आर्थिक स्तर में सुधार करना है।
अब आज इस योजना के वास्तविक क्रियान्वयन का समय है | हमे इस योजना के द्वारा विश्व के उन सभी निवेशकों को भारत में निवेश के लिए आकर्षित करना है जो चीन से विमुख हो गए है |
माननीय प्रधानमंत्री जी ने कुछ दिन पहले अपने सम्बोधन में स्वदेशी को प्रोत्साहित करने के लिए जोर दिया है | उन्होंने कहा है की लॉकडाउन के विपरीत काल में लोगो की जरुरत इसी स्वदेशी उत्पादों ने पूरी की है | कोरोना ने हमें लोकल मार्केट का महत्व भी समझा दिया है | स्थानीय बाजार केवल जरुरत नहीं बल्कि हम सबकी जिम्मेदारी भी है | उन्होंने कहा कि ‘स्वदेशी को हमें अपने जीवन का मंत्र बनाना ही होगा’ | इसके लिए उन्होंने एक मन्त्र भी दिया है - " वोकल फॉर लोकल " |
अब उनके सम्बोधन के उपरांत देश में एक नई बहस ने जन्म ले लिया है की देश में स्वदेशी उत्पादों को प्रोत्साहित करना है या की FDI को प्रोत्साहित करके देश में विदेशी निवेश को बढ़ाना है | ये बहस देश के लिए नई नहीं है बल्कि पिछले कई दशकों से निरंतर चल रही है | देश का एक बहुत बड़ा तबका स्वदेशी को प्रोत्साहित करने पर जोर देता है तो देश का दूसरा तबका FDI का समर्थन करता है |
परन्तु इनमे से कोई भी ये समझने के लिए तैयार नहीं है की वही वृक्ष आकाश की ऊंचाइयों तक फलता फूलता है जिसकी जड़ें जमीन में अधिक गहरी होती है | अतः हमे FDI से उत्पन्न विदेशी उत्पाद और देश में उत्पन्न स्वदेशी उत्पादों का आपसी सामंजस्य निर्मित करना होगा | ये दोनों ही एक दूसरे के पूरक है जब तक हम स्वदेशी उत्पादों के निर्माण के लिए आत्मनिर्भर नहीं होंगे तब तक कोई भी विदेशी निवेशक आप के देश में निवेश करने के लिए तैयार नहीं होगा | क्यूंकि जब तक आप स्वयं पर निर्भर नहीं है तब तक कोई भी बाहरी तत्व आप पर निर्भर नहीं हो सकता है | प्रधानमंत्री जी के सम्बोधन की यदि हम ध्यान से समीक्षा करे तो हम पाएंगे की उन्होंने स्वदेशी के प्रोत्साहन पर जोर तो दिया है परन्तु विदेशी का विरोध भी नहीं किया है, और यही होना भी चाहिए |
विश्व के किसी भी देश का अवलोकन कर लीजिये तो हमे जानकारी प्राप्त होगी की सभी देश स्वदेशी और विदेशी के साम्य से ही चलते है | ऐसा कोई देश नहीं जो पूर्णतः स्वदेशी हो या पूर्णतः विदेशी हो | हमारी सोच होनी चाहिए की इस विश्व में ऐसा कोई भी विदेशी उत्पाद नहीं छोड़े जिसे हम स्वदेशी न बना ले |
उदाहरण स्वरुप कोई ऐसा उत्पाद जिसे हम पूर्णतः विदेशी रूप में ही उपयोग करते है तो उस उत्पाद का उत्पादन करने वाले समूह को अपनी उत्पादन इकाई भारत में स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करे जिससे वह विदेशी उत्पाद भी अपने देश के लोगो के द्वारा निर्मित होने लगेगा जिस कारण लोगो को रोजगार भी मिलेगा और वह उत्पाद विदेशी से स्वदेशी के मार्ग पर आ जाएगा | उस उत्पाद के हमारे यहाँ निर्मित होने से हमे उसकी वास्तविक तकनीक की जानकारी होगी | और उस उत्पाद का एकाधिकार समाप्त हो जाएगा | बिलकुल यही सूत्र चीन ने अपनाया और विश्व में अपनी एक अलग पहचान निर्मित की |
आज भी हमारे देश में ऐसी बहुत सी वस्तुएं है जिन्हे हम स्वदेशी मानते हुए प्रयोग करते है जबकि उनकी उत्पत्ति और उनका मूल स्थान कभी भारत था ही नहीं जैसे प्रसिद्द मिठाई गुलाबजामुन भारत में ईरान से आई, सब्जियों का राजा आलू सत्रहवीं शताब्दी से पहले भारत में उत्पन्न ही नहीं होता था, और आज भारत की प्रमुख फसल आलू ही है, आज विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखने वाला भारतीय रेशम और रेशम से निर्मित वस्त्र इत्यादि एक समय भारत में निर्मित ही नहीं होते थे | केवल चीन एक मात्र देश था जहाँ रेशम निर्मित होता था और पूरे विश्व में आपूर्त किया जाता था | ऐसे और भी कई उदहारण हे जिनसे पता चलता है की आज जो स्वदेशी है वह एक समय विदेशी हुआ करता था | परन्तु हमारी खुली विचारधारा ने उसे बहुत लम्बे समय तक विदेशी नहीं रहने दिया और वो सब कुछ जो एक समय विदेशी था आज न केवल स्वदेशी है अपितु विश्व में भारत का प्रतिनिधित्व भी कर रहा है |
इसलिए यह आवश्यक है की हम " मन से देशी, आचरण से स्वदेशी और सोच से विदेशी " हो जाए | क्यूंकि जब तक सोच विदेशी नहीं होगी तब तक हम विदेशी को स्वदेशी बनाने के लिए कटिबद्ध नहीं होंगे |
लेखक : डॉ. शैलेन्द्र सिंह
Each & every word is meaningful
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