कोरोना - बड़ी समस्या का छोटा इशारा
कोरोना - बड़ी समस्या का छोटा इशारा
कोरोना महामारी के कारण सारे विश्व में त्राहि त्राहि मची हुई है | लोग किसी भी प्रकार इससे बचना चाहते है | वे इस महामारी से खुद को और अपनी अर्थव्यवस्था को भी बचाना चाहते है | परन्तु बचने की इस आप धापी में हम सभी ये भूल रहे है की इस महामारी के द्वारा सृस्टि रचियता हमारा ध्यान किसी ऐसे विषय की ओर ले जाना चाहते है जिसे वर्षों से जानते हुए भी हम अनजान बने हुए है | कही वे हमे कोई ऐसा मार्ग तो नहीं दिखाना चाहते जिस पर चलकर हम अपनी सृष्टि को नष्ट होने से बचा सकते है |
कभी सोचा है आप ने की एक बहुत छोटा सा वायरस कोरोना आखिर इतना शक्तिशाली क्यों है की उसने पूरे विश्व की दैनिक दिनचर्या को ही बदल कर रख दिया है | लोगो की प्राथमिकताए वरीयताएँ सभी कुछ बदल गई है | आज विश्व में समय के चक्र को छोड़ बाकी सारे चक्र बंद हो चुके है |
यूँ तो मानव इतिहास विभिन्न प्रकार की त्रासदियों का साक्षी रहा है परन्तु उन में कोरोना का स्थान अद्वितीय है क्यूंकि कोरोना का जो विपरीत प्रभाव मानव सभ्यता पर पड़ रहा है या आगे जो पड़ने वाला है वैसा प्रभाव आज तक किसी त्रासदी का नहीं पड़ा है |
आइये हम अपने प्रश्नो के उत्तर खोजने की कोशिश करते है | पिछली एक सदी से सारा विश्व जलवायु परिवर्तन जैसी एक विराट और भयानक चुनौती का सामना कर रहा है | जिसका प्रभाव मानव सभ्यता पर इतना ख़राब है की मानव का नामोनिशान भी विश्व से मिट सकता है | ऐसा नहीं है की विश्व के विभिन्न वैज्ञानिक और सरकारें जलवायु परिवर्तन के विषय पर चिंतित नहीं है | वे न केवल चिंतित है बल्कि उससे निपटने के प्रयास भी निरंतर हो रहे है | विश्व स्तर पर कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में कार्य कर रही है |
सामान्यतः जलवायु का आशय किसी क्षेत्र विशेष में लंबे समय तक औसत मौसम से होता है। अतः जब किसी क्षेत्र विशेष के औसत मौसम में परिवर्तन आता है तो उसे जलवायु परिवर्तन कहते हैं। यदि वर्तमान संदर्भ में बात करें तो जलवायु परिवर्तन का प्रभाव लगभग संपूर्ण विश्व में देखने को मिल रहा है। इसके कारण पृथ्वी का तापमान बीते 100 वर्षों में लगातार बढ़ रहा है। पृथ्वी के तापमान में यह परिवर्तन संख्या की दृष्टि से काफी कम हो सकता है, परंतु इस प्रकार के किसी भी परिवर्तन का मानव जाति पर बड़ा असर हो सकता है। आँकड़े दर्शाते हैं कि 19 वीं सदी के अंत से अब तक पृथ्वी की सतह का औसत तापमान लगभग 1.62 डिग्री फॉरनहाइट (अर्थात् लगभग 0.9 डिग्री सेल्सियस) बढ़ गया है। पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होने से हिमनद पिघल रहे हैं | जिससे अब तक समुद्र के जल स्तर में भी लगभग 8 इंच की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। परिणामस्वरूप प्राकृतिक आपदाओं के होने और कुछ द्वीपों के डूबने का खतरा भी बढ़ गया है।
जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण विश्वैशिक तापमान (Global Warming) है | पृथ्वी के चारों ओर ग्रीनहाउस गैस की एक परत बनी हुई है, ग्रीनहाउस गैसों की यह परत पृथ्वी की सतह पर तापमान संतुलन को बनाए रखने में आवश्यक है और विश्लेषकों के अनुसार, यदि यह परत नहीं होगी तो पृथ्वी का तापमान काफी कम हो जाएगा। इस परत में मीथेन, नाइट्रोजन ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें शामिल हैं।
ग्रीनहाउस का प्रभाव पृथ्वी के लिए बहुत आवश्यक है परन्तु एक सीमा के भीतर, क्यूंकि यह पृथ्वी के तापमान को संतुलित रखता है | इसकी अनुपस्थिति में पृथ्वी बेहद ठंडी हो जाएगी जिस कारण जीवों और वनस्पतियों को बहुत नुक्सान होगा | परन्तु जब कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड आदि गैसों की अधिकता के कारण ग्रीनहाऊस संरचना सघन से सघनतम होने लगती है तब पृथ्वी पर तापमान का साम्य नहीं रहता है और पृथ्वी का तापमान बढ़ने लगता है | जिसके फलस्वरूप विभिन्न प्रकार के विपरीत परिणाम जलवायु पर पड़ते है जिस से जलवायु परिवर्तन होता है, जो सभी जीव और वनस्पतियों के लिए हानिकारक है |
कोयले के पावर प्लांट, डीजल इंजन, ऑटोमोबाइल, वनों की कटाई, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और अन्य स्रोतों से होने वाला ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन पृथ्वी को अपेक्षाकृत काफी तेज़ी से गर्म कर रहा है। पिछले 150 वर्षों में वैश्विक औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है | गर्मी से संबंधित बीमारियों, बढ़ते समुद्र स्तर, भूकंप, तूफान की संख्या एवं उसकी तीव्रता में वृद्धि जैसे कई अन्य खतरनाक परिणामों में वृद्धि के लिये बढ़े हुए तापमान को भी एक कारण माना जा सकता है। एक शोध में पाया गया है कि यदि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के विषय को गंभीरता से नहीं लिया गया और इसे कम करने के प्रयास नहीं किये गए तो सदी के अंत तक पृथ्वी की सतह का औसत तापमान 3 से 10 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ सकता है। यही समस्या (Global Warming) है |
तापमान वृद्धि के अतिरिक्त जलवायु परिवर्तन के कई विपरीत प्रभाव सृष्टि पर पड़ते है जिससे शने शने सृष्टि का क्षय हो रहा है | पिछले कुछ दशकों में बाढ़, सूखा और बारिश आदि की अनियमितता काफी बढ़ गई है। यह सभी जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप ही हो रहा है। कुछ स्थानों पर बहुत अधिक वर्षा हो रही है, जबकि कुछ स्थानों पर पानी की कमी से सूखे की संभावना बन जाती है। जमीन के भीतर का जलस्तर लगातार गिरता जा रहा है | तापमान में वृद्धि और वनस्पति पैटर्न में बदलाव ने कुछ पशु, पक्षी एवं वनस्पतियों की प्रजातियों को विलुप्त होने के लिये मजबूर कर दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार, पृथ्वी की एक चौथाई प्रजातियाँ वर्ष 2050 तक विलुप्त हो सकती हैं।
(Global Warming), प्रदुषण आदि ऐसी स्थाई समस्याएं है जिनके प्रति जागरूक होना बहुत आवश्यक है | प्रकृति ने कोरोना के द्वारा हमे जगाने के लिए एक अलार्म बजाया है की जाग जाओ नहीं तो बहुत देर हो जाएगी | ऐसा नहीं है की हमारी नींद नहीं टूटी है निसंदेह हमारी नींद टूट चुकी है परन्तु अब देखना ये है की हम पूर्णतः जाग कर सचेत होते है या इस अलार्म को स्नूज़ (snooze) कर के पुनः सो जाते हैं |
वास्तविकता में कोरोना बड़ी समस्या का एक छोटा सा इशारा है जिसे समझना मानव के लिए अत्यंत आवश्यक है |
यूँ तो मानव इतिहास विभिन्न प्रकार की त्रासदियों का साक्षी रहा है परन्तु उन में कोरोना का स्थान अद्वितीय है क्यूंकि कोरोना का जो विपरीत प्रभाव मानव सभ्यता पर पड़ रहा है या आगे जो पड़ने वाला है वैसा प्रभाव आज तक किसी त्रासदी का नहीं पड़ा है |
आइये हम अपने प्रश्नो के उत्तर खोजने की कोशिश करते है | पिछली एक सदी से सारा विश्व जलवायु परिवर्तन जैसी एक विराट और भयानक चुनौती का सामना कर रहा है | जिसका प्रभाव मानव सभ्यता पर इतना ख़राब है की मानव का नामोनिशान भी विश्व से मिट सकता है | ऐसा नहीं है की विश्व के विभिन्न वैज्ञानिक और सरकारें जलवायु परिवर्तन के विषय पर चिंतित नहीं है | वे न केवल चिंतित है बल्कि उससे निपटने के प्रयास भी निरंतर हो रहे है | विश्व स्तर पर कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में कार्य कर रही है |
सामान्यतः जलवायु का आशय किसी क्षेत्र विशेष में लंबे समय तक औसत मौसम से होता है। अतः जब किसी क्षेत्र विशेष के औसत मौसम में परिवर्तन आता है तो उसे जलवायु परिवर्तन कहते हैं। यदि वर्तमान संदर्भ में बात करें तो जलवायु परिवर्तन का प्रभाव लगभग संपूर्ण विश्व में देखने को मिल रहा है। इसके कारण पृथ्वी का तापमान बीते 100 वर्षों में लगातार बढ़ रहा है। पृथ्वी के तापमान में यह परिवर्तन संख्या की दृष्टि से काफी कम हो सकता है, परंतु इस प्रकार के किसी भी परिवर्तन का मानव जाति पर बड़ा असर हो सकता है। आँकड़े दर्शाते हैं कि 19 वीं सदी के अंत से अब तक पृथ्वी की सतह का औसत तापमान लगभग 1.62 डिग्री फॉरनहाइट (अर्थात् लगभग 0.9 डिग्री सेल्सियस) बढ़ गया है। पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होने से हिमनद पिघल रहे हैं | जिससे अब तक समुद्र के जल स्तर में भी लगभग 8 इंच की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। परिणामस्वरूप प्राकृतिक आपदाओं के होने और कुछ द्वीपों के डूबने का खतरा भी बढ़ गया है।
जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण विश्वैशिक तापमान (Global Warming) है | पृथ्वी के चारों ओर ग्रीनहाउस गैस की एक परत बनी हुई है, ग्रीनहाउस गैसों की यह परत पृथ्वी की सतह पर तापमान संतुलन को बनाए रखने में आवश्यक है और विश्लेषकों के अनुसार, यदि यह परत नहीं होगी तो पृथ्वी का तापमान काफी कम हो जाएगा। इस परत में मीथेन, नाइट्रोजन ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें शामिल हैं।
ग्रीनहाउस का प्रभाव पृथ्वी के लिए बहुत आवश्यक है परन्तु एक सीमा के भीतर, क्यूंकि यह पृथ्वी के तापमान को संतुलित रखता है | इसकी अनुपस्थिति में पृथ्वी बेहद ठंडी हो जाएगी जिस कारण जीवों और वनस्पतियों को बहुत नुक्सान होगा | परन्तु जब कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड आदि गैसों की अधिकता के कारण ग्रीनहाऊस संरचना सघन से सघनतम होने लगती है तब पृथ्वी पर तापमान का साम्य नहीं रहता है और पृथ्वी का तापमान बढ़ने लगता है | जिसके फलस्वरूप विभिन्न प्रकार के विपरीत परिणाम जलवायु पर पड़ते है जिस से जलवायु परिवर्तन होता है, जो सभी जीव और वनस्पतियों के लिए हानिकारक है |
तापमान वृद्धि के अतिरिक्त जलवायु परिवर्तन के कई विपरीत प्रभाव सृष्टि पर पड़ते है जिससे शने शने सृष्टि का क्षय हो रहा है | पिछले कुछ दशकों में बाढ़, सूखा और बारिश आदि की अनियमितता काफी बढ़ गई है। यह सभी जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप ही हो रहा है। कुछ स्थानों पर बहुत अधिक वर्षा हो रही है, जबकि कुछ स्थानों पर पानी की कमी से सूखे की संभावना बन जाती है। जमीन के भीतर का जलस्तर लगातार गिरता जा रहा है | तापमान में वृद्धि और वनस्पति पैटर्न में बदलाव ने कुछ पशु, पक्षी एवं वनस्पतियों की प्रजातियों को विलुप्त होने के लिये मजबूर कर दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार, पृथ्वी की एक चौथाई प्रजातियाँ वर्ष 2050 तक विलुप्त हो सकती हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण लंबे समय तक चलने वाली गर्म हवाओं ने जंगलों में लगने वाली आग के लिये उपयुक्त गर्म और शुष्क परिस्थितियाँ पैदा की हैं। जनवरी 2019 से अब तक ब्राज़ील के अमेज़न वन को कुल 75000 बार वनाग्नि का सामना करना पड़ा है । साथ ही यह भी सामने आया है कि वन में आग लगने की घटना पिछले दो वर्षों में 85 प्रतिशत तक बढ़ गई हैं। जानकारों ने अनुमान लगाया है कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियाँ और अधिक बढ़ेंगी तथा इन्हें नियंत्रित करना मुश्किल होगा। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म संरचनाए जैसे वायरस इत्यादि की नवीन प्रजातियां जटिल से जटिलतम संरचनाओं के साथ उत्पन्न हो रही है जिनके इलाज और रोकथाम मानव को अभी नहीं मालूम है |
वैज्ञानिक कई दशकों से यह समझा रहे है कि जलवायु संकट से बीमारियों के उभरने और फैलने का तरीका बदल जाएगा। उनके रूप ज्यादा जटिल और असाध्य हो जाएंगे | उन्होंने माना की ऐसे कई कारण है, जैसे तेजी से शहरीकरण और वैश्वीकरण, गहन मांस उत्पादन एवं उपभोग, और रोगाणुरोधी प्रतिरोध जैसे कारकों से कोरोना जैसी नई संक्रामक बीमारियों के उदय की संभावना बढ़ रही है |
किसी भी संक्रामक रोग के लिए विषाणु और रोगाणु आदि मुख्य कारक होते है | ये सभी सूक्ष्म तंत्रों के उत्पन्न होने और जीवित बने रहने के लिए गर्म तापमान की आवश्यकता होती है | विश्वैशिक तापमान (Global Warming) के कारन पृथ्वी के तापमान में बढ़ोतरी हो रही है | जिस कारण ऐसे रोग जनक कारक वातावरण में पनप रहे है | हम सभी जानते है की जब कोई बाहरी सूक्ष्म तंत्र हमारे शरीर में प्रवेश करता है तो शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र सक्रीय हो जाता है और शरीर का तापमान बढ़ता है जिसे हम बुखार कहते हैं | इस बढे हुए तापमान में उस बाहरी सूक्ष्म तंत्र का जीवित रहना कठिन हो जाता है और व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है यह एक प्राकृतिक व्यवस्था है जो की हम सभी के शरीर में निरंतर होती रहती है जिसे हम शरीर की प्रतिरोधी क्षमता कहते है |
अब समझने वाली बात ये है की अब विश्वैशिक तापमान (Global Warming) के कारन बाहरी वातावरण का तापमान निरंतर बढ़ रहा है इस बढे हुए तापमान में जो सूक्ष्म तंत्र उत्पन्न हो रहे है वे हमारे शरीर के बढे हुए तापमान में आसानी से जीवित रह लेते है | जिस कारन इनसे होने वाले रोग असाध्य होते जा रहे है |
इन्ही वायरसों में से एक है कोरोना जो की इस विश्वैशिक तापमान (Global Warming) की देन है | ऐसा बिलकुल नहीं है की कोरोना केवल इसी लिए पैदा हुआ क्यूंकि विश्वैशिक तापमान में वृद्धि हो रही है | कोरोना के ही नहीं कोरोना जैसे अन्य कई विषाणुओं के पैदा होने के कारण अलग अलग है परन्तु वे सब मानव जाति, सृष्टि और समाज के लिए इतने घातक केवल और केवल विश्वैशिक तापमान के कारण ही हुए है |
इंसान की सर्वशक्तिशाली एवं सर्वसाधन संपन्न बनने की महत्वाकांक्षा के कारन जलवायु परिवर्तन और विश्वैशिक तापमान (Global Warming) इत्यादि कारको का उदय हुआ है | इस महत्वाकांक्षा के कारण वातावरण पर पड़ने वाला सबसे विषम प्रभाव प्रदुषण है | उक्त वर्णित सभी समस्याओं की जड़ में केवल प्रदुषण ही एकमात्र मुख्य कारक है | हम यदि विश्व में अभी तक होने वाली किसी भी महामारी की बात करे तो वह महामारी का सबसे अधिक विपरीत प्रभाव शहरी क्षेत्रों पर पड़ता है ग्रामीण क्षेत्रों में उनका प्रभाव शहरों की तुलना में कम पड़ता है क्यूंकि शहरी क्षेत्र प्रकृति से दूर और कृत्रिमता के समीप होते है | शहरों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में प्रदुषण अधिक होता है यही कारण हे की शहरों में नुकसान भी अधिक होता है |
पर्यावरण को प्रदूषित करने में सबसे अधिक योगदान अगर किसी का है तो वे है पार्टिकुलेट मैटर (PM 2.5) कण | ये कण बेहद सूक्ष्म होते है और विभिन्न प्रकार की संरचनाओं में पाए जाते है | ये कण धुल, धुआं इत्यादि से निर्मित होते है जिसमे मीथेन, नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड जैसी खतरनाक गैसों का मिश्रण होता है | जब हम सांस लेते है तो ये कण सांस के साथ हमारे शरीर में चले जाते है और हमे उच्च रक्तचाप, खांसी, दमा, ह्रदय रोग, मधुमेह इत्यादि बीमारियां के होने का खतरा बढ़ाते है | इस कारण मानव की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है और कोरोना जैसी बिमारियों से क्षति होने की संभावनाए बढ़ जाती है | एक शोध से यह ज्ञात होता है की विश्व में उन स्थानों पर कोरोना संक्रमण और उससे होने वाली मृत्यु की संख्या अधिक है जहा बहुत लम्बे कालखंड से प्रदूषण की अधिकता रही है |
यह शत प्रतिशत सत्य है की कोरोना के प्रभाव को कम करने के लिए होने वाले लॉकडाउन ने न केवल कोरोना के प्रभाव को कम किया है अपितु पर्यावरण से प्रदुषण के स्तर को कम करके उसे स्वच्छ भी किया है | विभिन्न पर्यावरणविदों के शोध हमें ये बताते है की जबसे विश्व के विभिन्न देशों में लॉकडाउन को लागू किया गया है वहां के प्रदुषण स्तर में 10% से 30% तक की कमी आई है | इस कमी के विश्व स्तर पर कई सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते है जैसे जिस गंगा को साफ़ करने के लिए करोड़ों रुपये और कई दशक खर्च कर दिए वह गंगा पिछले 70 साल में सबसे स्वच्छ स्तर पर है, जहा प्रदुषण के कारन होने वाली दृश्यता कुछ किलोमीटर तक सिमित रहती थी वही आज सैकड़ों किलोमीटर दूर से ही हिमालय की चोटियां दिखाई देती है, आप ने कभी मई के महीने में तापमान का ये निचला स्तर महसूस नहीं किया होगा | पूरा वातावरण बिलकुल वैसा साफ़ और स्वच्छ दिखाई दे रहा है जैसे किसी को मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद साफ़ साफ दिखाई देता है |
वास्तविकता ये है की जलवायु परिवर्तन और विश्वैशिक तापमान (Global Warming) आज की सबसे मुख्य समस्या है | ये उस वृक्ष की भांति है जिसपर कोरोना, स्पैनिश फ्लू, H1N1 फ्लू, स्वाइन फ्लू, ज़ीका इत्यादि जैसे फल निरंतर लगते रहे हैं और लगते रहेंगे | इसके कारण हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता निरंतर कमजोर हो रही है | और हम इन सब बीमारियों से लडने में असमर्थ होते जा रहे है | वर्तमान परिपेक्ष में कोरोना प्रदुषण के घोड़े पर सवार वह आक्रांता है जिसकी तीव्रता को कम करने के लिए सर्वप्रथम उसके घोड़े को मारना आवश्यक है |
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वर्तमान में जलवायु परिवर्तन, विश्वैशिक तापमान (Global Warming), प्रदुषण आदि वैश्विक समाज के समक्ष मौजूद सबसे बड़ी चुनौतियाँ है एवं इससे निपटना वर्तमान समय की बड़ी आवश्यकता बन गई है। यह बात सत्य है की वैज्ञानिकों ने विश्व की समस्त सरकारों को इनसे होने वाले खतरों से चेताया है परन्तु इनसे होने वाले दुष्परिणाम इतने धीमे धीमे हो रहे है की हम सभी उनकी ओर से निश्चिंत है | ये दुष्परिणाम धीमे जरूर है परन्तु स्थाई और असाध्य है | मानव सभ्यता के लिए कोरोना एक अस्थायी खतरा है जो आज नहीं तो कल समाप्त हो ही जाएगा परन्तु जलवायु परिवर्तन, विश्वैशिक तापमान
किसी भी संक्रामक रोग के लिए विषाणु और रोगाणु आदि मुख्य कारक होते है | ये सभी सूक्ष्म तंत्रों के उत्पन्न होने और जीवित बने रहने के लिए गर्म तापमान की आवश्यकता होती है | विश्वैशिक तापमान (Global Warming) के कारन पृथ्वी के तापमान में बढ़ोतरी हो रही है | जिस कारण ऐसे रोग जनक कारक वातावरण में पनप रहे है | हम सभी जानते है की जब कोई बाहरी सूक्ष्म तंत्र हमारे शरीर में प्रवेश करता है तो शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र सक्रीय हो जाता है और शरीर का तापमान बढ़ता है जिसे हम बुखार कहते हैं | इस बढे हुए तापमान में उस बाहरी सूक्ष्म तंत्र का जीवित रहना कठिन हो जाता है और व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है यह एक प्राकृतिक व्यवस्था है जो की हम सभी के शरीर में निरंतर होती रहती है जिसे हम शरीर की प्रतिरोधी क्षमता कहते है |
अब समझने वाली बात ये है की अब विश्वैशिक तापमान (Global Warming) के कारन बाहरी वातावरण का तापमान निरंतर बढ़ रहा है इस बढे हुए तापमान में जो सूक्ष्म तंत्र उत्पन्न हो रहे है वे हमारे शरीर के बढे हुए तापमान में आसानी से जीवित रह लेते है | जिस कारन इनसे होने वाले रोग असाध्य होते जा रहे है |
इन्ही वायरसों में से एक है कोरोना जो की इस विश्वैशिक तापमान (Global Warming) की देन है | ऐसा बिलकुल नहीं है की कोरोना केवल इसी लिए पैदा हुआ क्यूंकि विश्वैशिक तापमान में वृद्धि हो रही है | कोरोना के ही नहीं कोरोना जैसे अन्य कई विषाणुओं के पैदा होने के कारण अलग अलग है परन्तु वे सब मानव जाति, सृष्टि और समाज के लिए इतने घातक केवल और केवल विश्वैशिक तापमान के कारण ही हुए है |
इंसान की सर्वशक्तिशाली एवं सर्वसाधन संपन्न बनने की महत्वाकांक्षा के कारन जलवायु परिवर्तन और विश्वैशिक तापमान (Global Warming) इत्यादि कारको का उदय हुआ है | इस महत्वाकांक्षा के कारण वातावरण पर पड़ने वाला सबसे विषम प्रभाव प्रदुषण है | उक्त वर्णित सभी समस्याओं की जड़ में केवल प्रदुषण ही एकमात्र मुख्य कारक है | हम यदि विश्व में अभी तक होने वाली किसी भी महामारी की बात करे तो वह महामारी का सबसे अधिक विपरीत प्रभाव शहरी क्षेत्रों पर पड़ता है ग्रामीण क्षेत्रों में उनका प्रभाव शहरों की तुलना में कम पड़ता है क्यूंकि शहरी क्षेत्र प्रकृति से दूर और कृत्रिमता के समीप होते है | शहरों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में प्रदुषण अधिक होता है यही कारण हे की शहरों में नुकसान भी अधिक होता है |
पर्यावरण को प्रदूषित करने में सबसे अधिक योगदान अगर किसी का है तो वे है पार्टिकुलेट मैटर (PM 2.5) कण | ये कण बेहद सूक्ष्म होते है और विभिन्न प्रकार की संरचनाओं में पाए जाते है | ये कण धुल, धुआं इत्यादि से निर्मित होते है जिसमे मीथेन, नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड जैसी खतरनाक गैसों का मिश्रण होता है | जब हम सांस लेते है तो ये कण सांस के साथ हमारे शरीर में चले जाते है और हमे उच्च रक्तचाप, खांसी, दमा, ह्रदय रोग, मधुमेह इत्यादि बीमारियां के होने का खतरा बढ़ाते है | इस कारण मानव की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है और कोरोना जैसी बिमारियों से क्षति होने की संभावनाए बढ़ जाती है | एक शोध से यह ज्ञात होता है की विश्व में उन स्थानों पर कोरोना संक्रमण और उससे होने वाली मृत्यु की संख्या अधिक है जहा बहुत लम्बे कालखंड से प्रदूषण की अधिकता रही है |
यह शत प्रतिशत सत्य है की कोरोना के प्रभाव को कम करने के लिए होने वाले लॉकडाउन ने न केवल कोरोना के प्रभाव को कम किया है अपितु पर्यावरण से प्रदुषण के स्तर को कम करके उसे स्वच्छ भी किया है | विभिन्न पर्यावरणविदों के शोध हमें ये बताते है की जबसे विश्व के विभिन्न देशों में लॉकडाउन को लागू किया गया है वहां के प्रदुषण स्तर में 10% से 30% तक की कमी आई है | इस कमी के विश्व स्तर पर कई सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते है जैसे जिस गंगा को साफ़ करने के लिए करोड़ों रुपये और कई दशक खर्च कर दिए वह गंगा पिछले 70 साल में सबसे स्वच्छ स्तर पर है, जहा प्रदुषण के कारन होने वाली दृश्यता कुछ किलोमीटर तक सिमित रहती थी वही आज सैकड़ों किलोमीटर दूर से ही हिमालय की चोटियां दिखाई देती है, आप ने कभी मई के महीने में तापमान का ये निचला स्तर महसूस नहीं किया होगा | पूरा वातावरण बिलकुल वैसा साफ़ और स्वच्छ दिखाई दे रहा है जैसे किसी को मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद साफ़ साफ दिखाई देता है |
वास्तविकता ये है की जलवायु परिवर्तन और विश्वैशिक तापमान (Global Warming) आज की सबसे मुख्य समस्या है | ये उस वृक्ष की भांति है जिसपर कोरोना, स्पैनिश फ्लू, H1N1 फ्लू, स्वाइन फ्लू, ज़ीका इत्यादि जैसे फल निरंतर लगते रहे हैं और लगते रहेंगे | इसके कारण हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता निरंतर कमजोर हो रही है | और हम इन सब बीमारियों से लडने में असमर्थ होते जा रहे है | वर्तमान परिपेक्ष में कोरोना प्रदुषण के घोड़े पर सवार वह आक्रांता है जिसकी तीव्रता को कम करने के लिए सर्वप्रथम उसके घोड़े को मारना आवश्यक है |
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वर्तमान में जलवायु परिवर्तन, विश्वैशिक तापमान (Global Warming), प्रदुषण आदि वैश्विक समाज के समक्ष मौजूद सबसे बड़ी चुनौतियाँ है एवं इससे निपटना वर्तमान समय की बड़ी आवश्यकता बन गई है। यह बात सत्य है की वैज्ञानिकों ने विश्व की समस्त सरकारों को इनसे होने वाले खतरों से चेताया है परन्तु इनसे होने वाले दुष्परिणाम इतने धीमे धीमे हो रहे है की हम सभी उनकी ओर से निश्चिंत है | ये दुष्परिणाम धीमे जरूर है परन्तु स्थाई और असाध्य है | मानव सभ्यता के लिए कोरोना एक अस्थायी खतरा है जो आज नहीं तो कल समाप्त हो ही जाएगा परन्तु जलवायु परिवर्तन, विश्वैशिक तापमान
वास्तविकता में कोरोना बड़ी समस्या का एक छोटा सा इशारा है जिसे समझना मानव के लिए अत्यंत आवश्यक है |
लेखक :- डॉ. शैलेन्द्र सिंह
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