लॉकडाउन - अधिकार प्रधान एवं कर्त्तव्य गौण

लॉकडाउन  - अधिकार प्रधान एवं कर्त्तव्य गौण 

16 migrant workers run over by goods train near Aurangabad in ...
 
अभी 2 दिन पहले सुबह टेलीविज़न चालू किया तो एक बेहद दुखद खबर दिखाई दी की औरंगाबाद के पास रेल ट्रैक पर 14 मजदूरों की रेलगाड़ी से कटकर मृत्यु हो गई | एक तरफ पूरा दिन कोरोना के बढ़ते हुए कहर की खबरे और दूसरी तरफ औरंगाबाद जैसे हादसों की खबरों ने मुझे ही नहीं उन सभी को हिला के रख दिया जिनके भीतर अभी कुछ संवेदनाए बाकी है | 

अभी तक कही किसी भी सूत्र से कोई प्रामाणिक पुष्टि नहीं हो सकी है की ये मजदूर उस रात रेल ट्रैक पर कर क्या रहे थे | सबसे अधिक प्रामाणिक अवमानना है की ये मजदूर रेलवे ट्रैक के रास्ते से अपने मूल स्थान की और लौट रहे थे जहा से वे आए थे | सरकार ने, रेलवे ने, जांच एजेंसियों ने, मीडिया ने और हम ने भी ये मान लिया है की ये अवमानना सही है | 

एक बात और जो मैं ने पर्यवेक्षित की है और शायद आप सभी ने भी की होगी की हम लोग किसी भी मुद्दे पर बहुत जल्दी न्यायधीश बन जाते है और किसी को भी किसी भी घटना के लिए जिम्मेदार बना देते है | मैंने देखा की लगभग समस्त सोशल मीडिया पर इस घटना के लिए लोगो की अलग अलग प्रतिक्रियां आ रही है | अधिकतम लोग सरकार को इस सब के लिए जिम्मेदार बना रहे है लोगो का कहना है की सरकार की गलत नीतियों के कारण ये हादसा हुआ और माननीय प्रधानमंत्री जी को इस सब के लिए नैतिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए | कुछ लोग तो इससे भी कुछ कदम आगे निकल गए और प्रधानमंत्री जी के लिए अभद्र भाषा का उपयोग भी करने लगे | कुछ लोग बोलने लगे की उन्होंने वोट दिया है तो उन्हें गाली देने का भी अधिकार है | और भी बहुत कुछ जिसे पढ़ कर और सुनकर बहुत दुःख हुआ | ये दुःख इसलिए कतई नहीं हुआ क्यूंकि मैं सरकार समर्थक हूँ, यहाँ मैं स्पष्ट कर दू की मैं सरकार समर्थक नहीं हूँ परन्तु ऐसा भी नहीं हूं की कोई मुझसे बोले की कौवा मेरा कान ले गया तो मैं कौवा ढूढ़ना प्रारम्भ कर दू, मैं उनमे से हूं जो कौवा ढूंढने से पहले अपने कान को हाथ लगाना ज्यादा उचित समझते है | अभी ४ दिन पहले मेरे एक लेख में मैंने भी सरकार की लॉकडाउन की नीतियों पर प्रश्न उठाए है |
सरकार की नीतियों की एक स्वस्थ समीक्षा बहुत आवश्यक है |

यहाँ मुझे एक बहुत पुरानी कहानी याद आ गई की बहुत समय पहले किसी नगर में एक बहुत प्रतापी राजा राज किया करता था | वह बहुत परोपकारी और न्यायप्रिय था | उसके राज्य में सब कुछ कुशल था | सारी प्रजा खुश थी | एक बार राजा ने अपने राज्य में खीर वितरण की घोषणा की और पूरे नगर में दुमदुमी बाजवा दी की सात दिन बाद नगर में खीर वितरण का कार्यक्रम किया जाएगा अतः नगर के सभी जनमानस उस कार्यक्रम में सादर आमंत्रित है | 
हज़ारो की संख्या में नागरिको के लिए खीर पकाने की व्यवस्था की गई कई कुशल और पारंगत हलवाइयों की नियुक्ति की गई  राज्य के दुग्ध व्यापारियों ने अपने खुद के नगर से और आस पास के नगरों से शुद्ध दूध की व्यवस्था की,  खीर पकने के बाद उस खीर के उचित भण्डारण की व्यवस्था की गई | राजा ने समस्त मंत्री मंडल को विभिन्न जिम्मेदारियां सौंप दी और उन्हें उनके कार्य बता दिए | और कह दिया की नगर का एक एक नागरिक इस आयोजन में आना चाहिए और खीर खा कर ख़ुशी ख़ुशी यहाँ से जाना चाहिए | किसी भी प्रकार की कोई लापरवाही बर्दास्त नहीं की जावेगी | 
राजा के पास एक बहुत बेशकीमती गिद्ध था | कहते है की गिद्ध की नजर बहुत तेज होती है | उसकी नजर से कोई भी बच नहीं सकता | तो राजा ने उस गिद्ध को इस सम्पूर्ण आयोजन पर अपनी पैनी नजर रखने का आदेश दिया | सारी तैयारियां समय से पूर्व ही पूरी कर ली गई और खीर वितरण का दिन आ गया हजारो किलो खीर बना कर एक जगह भण्डार की गई | सब कुछ व्यवस्थित ढंग से चल रहा था सभी अपनी अपनी जिम्मेदारियों का सुचारु तौर पर निर्वहन कर रहे थे और नागरिकों के आने की राह देख रहे थे  की अचानक  गिद्ध की नजर खीर के समीप रेंग रहे एक बहुत ही जहरीले सांप पर पड़ी, ये खतरा भांप कर की कही सांप खीर में नहीं गिर जाए, गिद्ध ने झप्पट्टा मारा और सांप को पकड़ कर दूर ले जाने के लिए उड़ा परन्तु सांप गिद्ध की पकड़ से छूट गया और सीधा खीर में जा गिरा | 
सांप के गिरने से पूरी खीर जहरीली और दूषित हो गई | राजा को, मंत्रियो को, जनता को, किसी को भी इस बात की कोई खबर नहीं थी कि सारी खीर जहरीली हो चुकी है | परन्तु जब गिद्ध सांप को लेकर उड़ा तो एक बुढ़िया ने इस समस्त घटना को चुप चाप देख लिया उसने देख लिया की सांप गिद्ध के पंजों से छूट कर खीर में गिर गया है और सारी खीर दूषित हो चुकी है | परन्तु उस बुढ़िया ने इस घटना के बारे में किसी को कुछ नहीं बताया वो ये सब होते हुए चुप चाप देखती रही | उसने बस एक फैसला किया की वो इस खीर को नहीं खाएगी क्यूंकि खीर दूषित है, और वहां से चली गई |
पूर्व नियोजित कार्यक्रमानुसार लोगो का आगमन प्रारम्भ हुआ लोगो को खीर परोस दी गई लोगो ने खीर खाई राजा को ढेरों दुआएं दी और वहाँ से चले गए | सुबह राजा के पास खबर आई की पूरे नगर में हाहाकार मचा हुआ है | नगर के वे सभी लोग बीमार है जिन्होंने कल आप के यहाँ खीर खाई थी | तो राजा ने एक जांच कमेटी का गठन कर दिया और सम्पूर्ण मामले की जाँच के आदेश दे दिया | जांच कमेटी की रिपोर्ट से पता चला की खीर में सांप गिर गया था जिस कारण खीर जहरीली हो गई थी और उस जहरीली खीर को खा कर नगर के नागरिक बीमार हो गए | 
राजा ने खुद को इस पूरी त्रासदी के लिए दोषी माना और अग्नि समाधि लेने का निर्णय लिया |  राजा भगवान् का बहुत बड़ा भक्त था तो उसके इस निर्णय के कारण भगवान् प्रकट हुए और राजा से कहा की तुम इस सब के लिए दोषी नहीं हो तुम क्यों खुद को जिम्मेदार मान कर अग्नि समाधी ले रहे हो | राजा बोला की 'हे भगवन इस सब के लिए मैं ही दोषी हूँ, मेरे यहाँ मेरे बुलावे पर सभी लोग आए और खीर खा कर बीमार हो गए तो कोई दूसरा इस सब के लिए कैसे जिम्मेदार हो सकता है' | भगवान् बोले की 'हे राजन वो सब मैं तुम को अभी नहीं बता सकता | बस तुम इतना जान लो की मुझे सब पता है और कल प्रातः तक इस सब के लिए जो जिम्मेदार है वो स्वतः ही मर जाएगा | तुम्हे स्वयं को दोषी मान कर अग्नि समाधी लेने की आवश्यकता नहीं है' | ऐसा बोल कर भगवान् तो अंतर्ध्यान हो गए | परन्तु सब तरफ ये चर्चा होने लगी की अब दोषी कौन है ? और सुबह तक कौन मरेगा ? कुछ लोग इस समस्त घटना के लिए सांप को, कुछ लोग गिद्ध को, कुछ लोग मंत्रियों को, कुछ लोग राजा को दोषी मान रहे थे | जैसे तैसे रात बीती और सुबह जब देखा तो गिद्ध, मंत्री और राजा सभी जीवित थे परन्तु वो बुढ़िया मर चुकी थी | जो की वास्तविकता में इस पूरी घटना के लिए जिम्मेदार थी | उसने सब कुछ होते हुए देखा परन्तु चुप रही कुछ बोली नहीं | किसी को कुछ नहीं बताया | जिस कारण इतनी बड़ी दुर्घटना हो गई | 

इस कहानी की तुलना हम आज के परिपेक्ष में करते है पाते है की इस कहानी में जिस राजा का जिक्र किया गया है वह आज के परिपेक्ष में सरकार है | जो गिद्ध है वह लॉकडाउन है | जो सांप है वह अव्यवस्था है | खीर सम्पूर्ण राज्य की निकाय एवं व्यवस्था है | और जो वह बुढ़िया है वह हम और आप जैसे लोग है | 

आज सर्वाधिक प्रासंगिक संदर्भ कोरोना और लॉकडाउन है इसलिए हम अपनी कहानी की तुलना इन सबसे कर रहे है | परन्तु यदि गंभीरता से चिंतन किया जाए तो देश की प्रत्येक समस्या कही न कही इस कहानी के तुल्य ही प्रतीत होगी |  

मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duty Of The Indian ...

हमारा देश 135 करोड़ की जनसँख्या वाला एक बहुत ही विशाल देश है इनमे से लगभग 20 करोड़ लोग ऐसे है जो प्रवासी तौर पर अपने जीवनयापन के लिए अपनी जन्मभूमि को छोड़ कर दूसरे राज्यों में काम करने के लिए जाते है | पर कभी सोचा है की ये मजदूर काम किसके यहाँ करते है ? इनमे से कोई भी मजदूर प्रत्यक्ष रूप में सरकार के लिए काम नहीं करता है ये सब हम आप जैसे निजी लोगो के अधीन काम करते है और इन्ही में से कुछ अप्रत्यक्ष रूप में विभिन्न सरकारी योजनाओं के अंतर्गत सरकार के लिए भी काम करते है | तो फिर जब विषम परिस्थति आई तो ये सब केवल सरकार की जिम्मेदारी कैसे हो गए ? 
इनमे से अधिकतर हम आप जैसे लोगो के घर, दफ्तर और प्रतिष्ठानों में निजी काम भी करते है तो क्या ये सरकार की ही तरह हमारी भी जिम्मेदारी नहीं है ? परन्तु हम और आप ने कभी इस दृष्टिकोण से सोचा ही नहीं |

हमने कहा की सरकार ने गलत किया, शराब की दुकाने नहीं खोलनी चाहिए, सरकार को केवल उसका वित्तीय लाभ दिख रहा है उसे जनता की कोई चिंता नहीं है, सरकार का ये निर्णय अमानवीय है इत्यादि कई पोस्टों से हमारा सोशल मीडिया भरा पड़ा है | मैं उन सभी से ये पूछना चाहता हूं कि सरकार ने शराब की दुकाने खोलने का आदेश दिया है परन्तु ऐसा कोई आदेश नहीं दिया है कि लोगो को अनिवार्य रूप से शराब खरीदनी ही पड़ेगी और पीनी भी पड़ेगी | सरकार ने निर्णय लिया की शराब की दूकान खुलेंगी तो खुलने दो, आप को उचित नहीं लगता की इस परिस्थिति में शराब खरीदनी चाहिए या पीनी चाहिए तो मत खरीदिये | 

देश में रोज हजारो बलात्कार होते है, हजारों डकैती होती है, हजारों क़त्ल होते है, धर्म के नाम पर रोजाना न जाने कितने लोगो को मार दिया जाता है, दैनिक जरूरतों के सामान और दवाइयों की कालाबाजारी होती है, खाने पीने की चीजों में मिलावट होती है, और ऐसी ही न जाने कितनी अव्यवस्था रुपी सांप हमारे निकाय में रोजाना गिर रहे है और हम बुढ़िया की तरह मौन होकर उनको गिरते हुए और देश के निकाय और समाज को दूषित होते हुए देख रहे है | 

हम सब ये मानते है की हम वोट देते है जो की हमारा मौलिक अधिकार है, और सरकार चुनते है | बस इसके बाद हमारी समस्त जिम्मेदारियां समाप्त हो जाती है | अब जो करना है वो सरकार करेगी | अब हमारा देश की व्यवस्थाओ और देश के निकाय से कोई वास्ता नहीं है | हम अब सारी अव्यवस्थाओ के लिए सरकार को जिम्मेदार बनाएँगे और उसे गाली देंगे | 

हम सब को संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों की जानकारी है और हम उनकी सुरक्षा भी बखूबी करते है | परन्तु ये भूल जाते है की उसी संविधान में मौलिक कर्तव्यों का भी उल्लेख है | परन्तु हम में से कोई भी व्यक्ति उन मौलिक कर्तव्यों की न तो जानकारी रखता है और नहीं उनको निभाने के बारे में सोचता है | अधिकारों को मांगने से पूर्व यदि हम अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक होकर उनका निर्वहन करेंगे तो हमे अपने अधिकारों के लिए कोई मांग नहीं उठानी पड़ेगी वे स्वतः ही प्राप्त हो जाएंगे | 

कोरोना आज नहीं तो कल समाप्त हो ही जाएगा और ये लॉकडाउन भी खुल जाएगा | परन्तु इस सब से जो अव्यवस्थाए हमारे समाज और हमारे निकाय में व्याप्त हो गई है या जो पहले से भी हमारे समाज और निकाय में उपस्थित है, उन्हें हम और आप को मिलकर ही समाप्त करना होगा ये किसी भी सरकार के लिए संभव नहीं है | 
जिस प्रकार हम अपने अधिकारों के लिए जागरूक है उसी प्रकार हम अपने कर्तव्यों के लिए भी जागरूक हो जाए तो हमारी और देश की आधे से अधिक समस्याएं समाप्त हो जाएंगी | 
   

लेखक - डॉ. शैलेन्द्र सिंह  











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